Saturday, July 12, 2014

DROUGHT REASON AND SOLUTION

सूखे की समस्या का कारण और निवारण 

 
इन दिनों हमारा देश अब तक के सबसे बड़े सूखे की समस्या से ग्रस्त है। अधिकतर छोटे बड़े बाँध , छोटे बड़े तालाब तालाब ,कुए ,नलकूप आदि सूख गए हैं।  हर रोज किसानो की आत्म हत्या के  समाचार आ रहे हैं।
पिछले साल मध्य भारत में बहुत पानी गिरा था किन्तु इस साल अभी तक पानी  नहीं के बराबर गिरा है। अनेक खेतों की फसल सूख गयी है।  पीने तक के पानी का गम्भीर संकट उत्पन्न हो गया है।

इस समस्या का मूल कारण खेती करने के लिए की जा रही जमीन की जुताई (Tilling and plowing ) है। 

अधिकतर लोग सोचते हैं की पानी की समस्या से निपटने  के लिए  लिए छोटे बड़े बांध ,तालाब आदि एक पक्का उपाय है यह सच नहीं है। हरे भरे वनो से आच्छादित पहाड़ों को देखिये वहां बिना बरसात के झरने चलते रहते हैं।  जबकि मेदानी इलाके  बूँद बूँद पानी को तरस रहे हैं। यह समस्या हमने गैर कुदरती खेती करके उत्पन्न की है। हम लगातार हरे भरे वन ,बाग़ बगीचों ,और चरोखरों को अनाज के खेतों में तब्दील करते जा रहे हैं। जो मरुस्थल में तब्दील होते जा रहे हैं।

जुताई करने से बरसात का पानी जमीन में नहीं समाता है वह तेजी से बहता है अपने साथ खाद को भी बहा कर ले जाता है।  जब जमीन को नहीं जोता  या खोदा जाता है तो इसके विपरीत बरसात का पानी जमीन में रिस  जाता है वह बहता नहीं है इसलिए खेत की मिट्टी (जैविक खाद ) का बहना भी रुक जाता है।  बरसात  के जल को संग्रहित करने का यह सबसे उत्तम तरीका है।
 हमने  पिछले 27 सालों  से अधिक समय से  खेतों की जुताई बंद कर दी है इस कारण हमारे उथले कुए साल भर भरे रहते हैं। इसलिए हमारा मानना है की-

बहते पानी को रोकने की वजाय बहती जैविक खाद (मिट्टी ) को रोकना जरूरी है।


                                               
https://www.youtube.com/watch?v=q1aR5OLgcc0&feature=player_detailpage



बिना जुताई की कुदरती खेती जिसका आविष्कार जापान के स्व. मनोबू फुकोकाजी ने  किया है एक मात्र
 
ऐसा  तरीका है जिसमे " जैविक खाद " और जल का पूरा पूरा संरक्षण हो जाता है। यह खेती करने की सबसे सरल और उत्तम तकनीक है जो" कुछ मत करो " के  दर्शन और कुदरती सत्य से परिपूर्ण विज्ञान पर आधारित है।


https://www.youtube.com/watch?v=5_5eoUojVpI&feature=player_detailpage

पिछली बार जब मेरी मुलाकात फुकूओकाजी से  गांधीआश्रम में हुई थी उस समय वह कह रहे थे की अभी तक आपने खेती के बारे में जो कुछ भी पढ़ा है उसे भूल जाओ और मेरी किताबों को भी भूल जाओ बस जमीन पर बीज बोने का एक मात्र ऐसा काम जिसे हमें करते जाना है उसके लिए जमीन को खोदना ,खरपतवारों को मारना ,कीड़े आदि को मारना कुछ नहीं करने की जरुरत है केवल हम  रोज बीज इकठा कर उन्हें क्ले ( कपे  वाली मिट्टी जो नदी नालों या पुराने तालाबों में इकट्ठा रहती है जिस से मिट्टी के बर्तन बनते हैं ) की गोलियां बनाकर बिखरते जाएँ। ऐसा करने से हम आसानी से अपने खाने का इंतज़ाम कर सकते हैं और अपने बिगड़ते पर्यावरण को सुधार सकते हैं। जिस से सूखे की समस्या का भी समाधान हो जायेगा। यह  हर हाथ को काम और किसान को समाज सम्मान दिलाने की योजना है।

कहीं कहीं जहाँ क्ले नहीं मिलती है वहां दीमक की मिटटी का भी उपयोग किया जा सकता है. बीज गोली को मजबूत होना चाहिए यह क्ले की क्वालिटी पर निर्भर  करता है हम बीज गोलियों को बना कर उन्हें पानी में डूबा कर उनकी मजबूती का टेस्ट करते हैं यदि वह बिखरने लगती है तो हम मिट्टी में १० % बुझा हुआ चूना मिला लेते हैं यह सलाह हमे Sowing seeds in deserts by Fukuoka से मिली है।

क्ले सब से ताकतवर जैविक खाद है यह गोबर की खाद से १०० गुना अधिक ताकतवर है। इसमें केंचुओं के आलावा असंख्य सूक्ष्म जीवाणु के बीज रहते हैं जो जमीन को उर्वरकता प्रदान करते हैं और जमीन को पोरस बना देते हैं। यह एक प्रकार का "जामन " है जैसा दूध को दही बनाते समय डाला जाता है यह एक प्रकार का" यीस्ट" है जो ब्रेड बनाते समय उसे स्पोंजी बनाने के लिए डाला जाता है। क्ले से खेत जल्द ही उर्वरक  और छिद्रित हो जाते हैं यह काम किसी भी मशीन या रसायन के बस की बात नहीं है।

तैयार गोलियों को यहाँ वहाँ अपनी आवशयकता अनुसार बिखराने  से कुदरती खेती हो जाती है। खरपतवारों और फसलों में लगने वाले रोगों का अपने आप नियंत्रण हो जाता है। यह खेती पेड़ों के साथ हो जाती है। इस तरीके से पनपते मरुस्थलों को भी काबू में किया जा सकता है। अनेक संस्था रेगिस्तानों में बीज गोलियों को हवाई जहाजों से फेंकने का काम कर रहने लगी हैं।







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